किन्तु एक बड़ी चूक उन राम के शत्रु साहित्यिक चोरों से हो गई कि वे नारद जी के वर्णन में प्रक्षेप डालना भूल गए ।
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उन दिनों जब मुद्रण के लिये प्रैस नहीं थे तब प्रक्षेप डालना बहुत आसान था, विशेषकर किसी समृद्ध व्यक्ति के लिये ; धन खर्च कर १ ००-२ ०० प्रतियां लिखवाकर वितरण करवाना ही तो था।